उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता विधेयक पर विपक्ष ने की अध्ययन के लिए मांगा पर्याप्त समय
देहरादून। स्वतंत्रता के बाद उत्तराखंड देश का ऐसा पहला राज्य बन गया है, जिसने समान नागरिक संहिता की दिशा में निर्णायक पहल की है। लंबी कसरत के बाद सरकार ने मंगलवार को विधानसभा में समान नागरिक संहिता, उत्तराखंड-2024 विधेयक पेश कर दिया।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा सदन में पेश विधेयक में 392 धाराएं हैं, जिनमें से केवल उत्तराधिकार से संबंधित धाराओं की संख्या 328 है। विधेयक में मुख्य रूप से महिला अधिकारों के संरक्षण को केंद्र में रखा गया है। कुल 192 पृष्ठों के विधेयक को चार खंडों विवाह और विवाह विच्छेद, उत्तराधिकार, सहवासी संबंध (लिव इन रिलेशनशिप) और विविध में विभाजित किया गया है।
विधेयक के पारित होने के बाद इसे राजभवन और फिर राष्ट्रपति भवन को स्वीकृति के लिए भेजा जाएगा। इस विधेयक के कानून बनने पर समाज में व्याप्त कुरीतियां व कुप्रथाएं अपराध की श्रेणी में आएंगी और इन पर रोक लगेगी। इनमें बहु विवाह, बाल विवाह, तलाक, इद्दत, हलाला जैसी प्रथाएं शामिल हैं। संहिता के लागू होने पर किसी की धार्मिक स्वतंत्रता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। विधेयक में महिलाओं को संपत्ति में समान अधिकार के प्रविधान किए गए हैं।
नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने कहा कि विधेयक के अध्ययन के लिए पर्याप्त समय दिया जाना चाहिए। सरकार इस पर जल्दबाजी क्यों कर रही है। मुख्यमंत्री ने नारेबाजी के बीच ही विधेयक को सदन में प्रस्तुत किया। विधेयक प्रस्तुत होने के बाद विधानसभा अध्यक्ष ने इसके अध्ययन के लिए सदस्यों को लगभग ढाई घंटे का समय देते हुए सदन की कार्यवाही दोपहर दो बजे तक के लिए स्थगित कर दी। दोपहर दो बजे विधेयक पर पर चर्चा शुरू हुई।
समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए प्रस्तुत विधेयक के दायरे में समूचे उत्तराखंड को लिया गया है। कानून बनने पर यह उत्तराखंड के उन निवासियों पर भी लागू होगा, जो राज्य से बाहर रह रहे हैं। राज्य में कम से कम एक वर्ष निवास करने वाले अथवा राज्य व केंद्र की योजनाओं का लाभ लेने वालों पर भी यह कानून लागू होगा। अनुसूचित जनजातियों और भारत के संविधान की धारा-21 में संरक्षित समूहों को इसके दायरे से बाहर रखा गया है।
विधेयक का पहला खंड विवाह और विवाह-विच्छेद पर केंद्रित है। इसमें स्पष्ट किया गया है कि बहु विवाह व बाल विवाह अमान्य होंगे। विवाह के समय लड़की की न्यूनतम आयु 18 व लड़के की न्यूनतम आयु 21 वर्ष होनी चाहिए। साथ ही विवाह के पक्षकार निषेध रिश्तेदारी की डिग्रियों के भीतर न आते हों। इस डिग्री में सगे रिश्तेदारों से संबंध निषेध किए गए हैं। यदि इन डिग्रियों के भीतर होते हों तो दोनों पक्षों में से किसी एक की रूढ़ी या प्रथा उन दोनों के मध्य विवाह को अनुमन्य करती हो, लेकिन ये रूढ़ी या प्रथा लोक नीति व नैतिकता के विपरीत नहीं होनी चाहिए।
संहिता में विवाह और विवाह विच्छेद का पंजीकरण अनिवार्य किया गया है। 26 मार्च 2010 के बाद हुए विवाह का पंजीकरण अनिवार्य होगा। पंजीकरण न कराने की स्थिति में भी विवाह मान्य रहेगा, लेकिन पंजीकरण न कराने पर दंड दिया जाएगा। यह दंड अधिकतम तीन माह तक का कारावास और अधिकतम 25 हजार तक का जुर्माना होगा।
सभी धर्मों के लिए दांपत्य अधिकारों का उल्लेख भी विधेयक में किया गया है। साथ ही न्यायिक रूप से अलगाव के विषय में व्यवस्था की गई है। यह भी बताया गया है कि किस स्थिति में विवाह को शून्य विवाह माना जाएगा। विधेयक में विवाह-विच्छेद के संबंध में विस्तार से प्रकाश डाला गया है। कोई भी इस संहिता में उल्लिखित प्रविधानों के अलावा किसी अन्य प्रकार से विवाह विच्छेद नहीं कर सकेगा। इस व्यवस्था से एकतरफा मनमाने तलाक की प्रथा पर रोक लग जाएगी।
विवाह-विच्छेद के संबंध में याचिका लंबित रहने पर भरण-पोषण और बच्चों की अभिरक्षा के संबंध में प्रविधान किए गए हैं। संहिता में उल्लिखित धाराओं का उल्लंघन करने पर छह माह तक का कारावास व 50 हजार रुपये जुर्माने की व्यवस्था की गई है। विवाह-विच्छेद के मामलों में तीन वर्ष तक का कारावास होगा। पुनर्विवाह के लिए यदि कोई तय नियम का उल्लंघन करता है तो वह एक लाख रुपये तक का जुर्माना व छह माह तक के कारावास का भागी होगा।
विधेयक के दूसरे खंड में उत्तराधिकार का विषय समाहित है। उत्तराधिकार के सामान्य नियम और तरीकों को विधेयक में स्पष्ट किया गया है। इसमें संपत्ति में सभी धर्मों की महिलाओं को समान अधिकार दिया गया है। यह स्पष्ट किया गया है कि सभी जीवित बच्चे, पुत्र अथवा पुत्री संपत्ति में बराबर के अधिकारी होंगे।
यदि कोई व्यक्ति अपना कोई इच्छापत्र (वसीयत) नहीं बनाता है और उसकी कोई संतान अथवा पत्नी नहीं है तो वहां उत्तराधिकार के लिए रिश्तेदारों को प्राथमिकता दी जाएगी। इसके लिए भी विधेयक में सूची निर्धारित की गई है। विधेयक में उत्तराधिकार के संबंध में व्यापक प्रविधान किए गए हैं। इसमें कुल 328 धाराएं रखी गई हैं।
लिव इन में पंजीकरण न कराने पर अधिकतम तीन माह का कारावास और 10 हजार रुपये तक के जुर्माने का प्रविधान है। वहीं गलत जानकारी देने अथवा नोटिस देने के बाद भी जानकारी न देने पर अधिकतम छह माह के कारावास अथवा अधिकतम 25 हजार रुपये जुर्माना अथवा दोनों हो सकते हैं। यदि कोई पुरुष महिला सहवासी को छोड़ता है तो महिला सहवासी उससे भरण पोषण की मांग कर सकती है। विधेयक में लिव इन के लिए अलग से नियम बनाने के लिए राज्य सरकार को अधिकृत किया गया है।
विधेयक का चौथा और अंतिम खंड विविध है। इसमें किसी भी प्रकार के संदेह को दूर करने के लिए उत्तराखंड विवाहों का अनिवार्य रजिस्ट्रेशन अधिनियम, 2010 को निरस्त करने की संस्तुति की गई है। साथ ही समान नागरिक संहिता कानून लागू होने के दौरान इससे संबंधित रूढ़ी, प्रथा या परंपरा, जो इससे संबंधित हो और राज्य में लागू रहे हैं, वह उस सीमा तक निष्प्रभावी हो जाएंगे जो विधेयक में निहित प्रविधानों में असंगत होंगे। इसमें सरकार को नियम बनाने की शक्ति दी गई है। साथ ही यदि कानून बनाने से कोई कठिनाई आती है तो उसे दूर करने की शक्ति भी सरकार में निहित की गई है।