अल्मोड़ा/बागेश्वर/चंपावत/पिथौरागढ़
अल्मोड़ा की लता कांडपाल: कलम से कुदाल तक, बंजर भूमि को बना दिया हरा-भरा, बनीं प्रेरणा का स्रोत
यदि मन में कुछ बेहतर करने की दृढ़ इच्छाशक्ति हो और मेहनत से परहेज न हो, तो कोई भी कठिन रास्ता सफलता की मंज़िल तक पहुंच सकता है। ऐसा ही एक प्रेरणादायक उदाहरण हैं उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के हवालबाग ब्लॉक के चितई पंत गांव की रहने वाली लता कांडपाल, जिन्होंने शिक्षक की भूमिका छोड़कर स्वरोजगार की राह चुनी और बंजर भूमि को फिर से उपजाऊ बना दिया।

लता कांडपाल ने अपनी शिक्षा गांव के स्कूल से शुरू कर एसएसजे कैंपस अल्मोड़ा और देहरादून से बीएड की डिग्री प्राप्त की। नई दिल्ली से एनटीटी स्किल डेवलपमेंट के तहत संगीत, सिलाई, कढ़ाई और पेंटिंग जैसे 12 कोर्स भी किए। करीब 15 वर्षों तक उन्होंने शिक्षिका के रूप में कार्य करते हुए गरीब बच्चों को नि:शुल्क पढ़ाया। परंतु बढ़ती बेरोजगारी ने उन्हें सोचने पर मजबूर कर दिया और उन्होंने खेती को अपना पेशा बनाने का फैसला किया।
महिला हाट संस्था अल्मोड़ा की सचिव कृष्णा बिष्ट से मशरूम उत्पादन की जानकारी प्राप्त कर लता ने वर्ष 2000 में इसकी शुरुआत की और पहले ही प्रयास में 25,000 रुपये का मुनाफा कमाया। इसके बाद उन्होंने न केवल अन्य महिलाओं को भी इसका प्रशिक्षण दिया, बल्कि अपनी पुरखों की 10 नाली बंजर भूमि को खुद कुदाल चलाकर खेती के लायक बना दिया।
आज लता अपने खेत में पॉलीहाउस के माध्यम से गोभी, मटर, धनिया, टमाटर, शिमला मिर्च जैसे मौसमी सब्जियों के साथ-साथ अदरक, हल्दी, कीवी, तेजपत्ता, अखरोट, बेल और खुमानी जैसे उत्पाद भी उगा रही हैं। उनके इस प्रयास ने गांव में ही नहीं, पूरे क्षेत्र में स्वरोजगार की नई प्रेरणा दी है।
वर्ष 2023 में गेल इंडिया के अध्यक्ष आशुतोष कर्नाटक, दिल्ली न्याय अकादमी के 80 प्रशिक्षु, उत्तर प्रदेश के 40 किसान, और प्लस एप्रोच संस्था के सदस्य भी लता की कार्यशैली से प्रभावित होकर उनके खेतों का भ्रमण कर चुके हैं। लता कांडपाल आज उत्तराखंड की उन महिलाओं में शुमार हैं, जिन्होंने संघर्ष, संकल्प और श्रम से न सिर्फ खुद को, बल्कि पूरे गांव को सशक्त बना दिया।
