हरिद्वार
परिक्रमा साहित्यिक मंच की काव्य गोष्ठी में गूँजे ओज-भावना से ओतप्रोत काव्य-पाठ
हरिद्वार। बी.एच.ई.एल. सैक्टर-चार स्थित सामुदायिक केन्द्र के सभागार में परिक्रमा साहित्यिक एवं सांस्कृतिक मंच की ओर से एक शानदार समसामयिक काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसका मुख्यテーマ था — “आँधियाँ कितनी भी आयें, दीप तुम बुझने न देना”। इस अवसर पर नगर के अनेक लोकप्रिय कवियों ने अपनी ओजस्वी रचनाएँ प्रस्तुत कर श्रोताओं से भरपूर वाहवाही बटोरी।
गोष्ठी का संचालन करते हुए सचिव शशिरंजन समदर्शी ने ‘रे पहलगाम तुम सोना मत…’ के माध्यम से पहलगाम में आतंकियों से मुठभेड़ में शहीद हुए जवानों को श्रद्धांजलि दी। वरिष्ठ कवि साधुराम पल्लव ने वैश्विक हालात पर चिंता जताते हुए कहा, ‘हालातों देख कर लगता यही कयास, धीरे-धीरे जा रहे है विश्व युद्ध के पास।’ अरुण कुमार पाठक ने ‘आँधियाँ कितनी भी आयें, दीप तुम बुझने न देना’ गाकर जीवन में संघर्ष करने की प्रेरणा दी।
युवा कवि दिव्यांश ‘दुष्यंत’ ने आधुनिक समाज पर तीखा व्यंग्य किया, वहीं गीतकार भूदत्त शर्मा ने ‘पाँव धरती पर धरो तो, धीर भी धरना प्रिये’ गुनगुनाकर जीवन-मूल्यों पर जोर दिया। पारिजात अध्यक्ष सुभाष मलिक ने ग्रामीण परिदृश्य उकेरते हुए ‘ढूँढता है फिर वही मन, दिन सुहाने गाँव के’ से लोकभावना प्रस्तुत की।
नीता नय्यर निष्ठा, बंदना झा और आशा साहनी ने नारी सशक्तिकरण, मातृत्व व संघर्ष पर मार्मिक रचनाएँ सुनाईं। कार्यक्रम के अध्यक्ष वरिष्ठ कवि ज्वाला प्रसाद शांडिल्य ‘दिव्य’ ने अपनी ओजमयी समीक्षा के साथ ‘बनकर देखो ऋषि-मुनि आप धुरंधर’ कहकर सद्प्रेरणा दी।
लोककवि कर्मवीर सिंह ने पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया—‘चलो रे लगाओ पेड़ सभी, धरती को हरा-भरा कर दो’। महेन्द्र कुमार और कुसुमाकर मुरलीधर पंत ने भी सामाजिक सरोकारों से ओतप्रोत रचनाएँ प्रस्तुत कर काव्यगोष्ठी को गरिमामय बनाया।
कार्यक्रम में गूंजती ताली, उत्साही श्रोता और काव्य का अद्भुत संगम इस बात का प्रमाण था कि परिक्रमा साहित्यिक मंच नगर में साहित्यिक ऊर्जा संचार करने में निरंतर अग्रसर है।
