हरिद्वार

संस्कृत-हिन्दी कवि गोष्ठी में कवियों ने किया गाँधी-शास्त्री का महिमा मंडन

हरिद्वार। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी तथा भारत के पूर्व प्रधान मंत्री स्व. लाल बहादुर शास्त्री की जन्म जयंती के अवसर पर संस्कृत शिक्षा विभाग (हरिद्वार जनपद) द्वारा एक संस्कृत-हिन्दी काव्यांजलि का आयोजन श्री उदासीन संस्कृत महाविद्यालय, कनखल के सभागार में किया गया। देर शाम तक चली इस कवि गोष्ठी संस्कृत और हिन्दी के कवियों ने विभिन्न विधाओं में‌ प्रस्तुत अपनी रचनाओं के माध्यम से दोंनो महापुरुषों अपनी-अपनी काव्यांजलि भेंट की।


कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री उदासीन अखाड़ा पंचायती के कोठारी स्वामी श्री राघवेन्द्रदास जी महाराज थे, जबकि कवि गोष्ठी की अध्यक्षता चेतना पथ मासिक पत्रिका के संपादक श्री अरुण कुमार पाठक ने की। कुशल संचालन डा. विजय कुमार त्यागी ने किया। कार्यक्रम संयोजक सहायक निदेशक, संस्कृत शिक्षा विभाग तथा सचिव, उत्तराखण्ड संस्कृत परिषद्, डा. वाजश्रवा आर्य ने सभी कविगण तथा आगन्तुकों का धन्यवाद किया।
गोष्ठी का शुभारम्भ डा. सागर झा की संस्कृतबद्ध पर्यावरणीय रचना ‘सदा रमणीय वृक्षाणाम्, सखे संगच्छनम् कूर्मा’ से हुई। डा. केशव दत्त बलियानी, ने व्याकरण कविता ‘तीन वचन है, तीन पुरुष हैं, तीनों के नियम भी तीन’ प्रस्तुत की। डा. दीप शिखा ‘शील’ ने ‘माँ मुझे आने दो’ के साथ बालिका भ्रूण की प्रार्थना निवेदित की। डा. सुशील कुमार त्यागी ‘अमित ने ‘अद्वितीय महाप्राण सबल थे राष्ट्रपिता, साहसी थे करदण्ड गीता अभिलाषी थे’ कह कर गाँधी जी को और डा. सर्वेश तिवारी ने ‘धोतीधारी दोनों ही थे दोनों कर्म पुजारी, सत्य अहिंसा सौम्य भावना देशभक्ति व्रतधारी’ कह कर गाँधी-शास्त्री दोनों को नमन किया। गोष्ठी अध्यक्ष अरुण कुमार पाठक ने ‘हिंसा का नंगा तांडव भारत में जब-जब होता है, चौराहे पर खड़ा-खड़ा तब मेरा गाँधी रोता है’ कहा कर महात्मा गाँधी की वर्तमान मनोदशा की परिकल्पना की।  डा. श्याम लाल गौड़ ने ‘हे वीरों मैं तुम्हारा गुणगान कैसे गाऊँ’ के साथ देश के वीरों को नमन किया। डा. ललिता चौहान ने ‘ जिसे हर पल एक नया एहसास, उनमें पाया मात-पिता को खास’ के साथ माता-पिता की महिमा का बखान किया।
डा. सतीश कुमार शास्त्री ने ‘स्वर्गलोक में कवि सम्मेलन’ प्रस्तुत की तो, डा. अशोक गिरि ने ‘आओ हम हिन्दी का विकास करें, अपने-अपने प्रयास करें’ तथा कवियत्री श्रीमती कंचन प्रभा गौतम ने ‘माता सी प्यारी है ये हिन्दी हमारी’ के साथ मातृभाषा हिन्दी का गुणगान किया। ‘पतित पावनी हे गंगा माँ झर-झर तेरा नीर’, कह कर दीपशिखा की अध्यक्षा डा. मीरा भारद्वाज ने माँ गंगा को नमन किया। डा. विजय त्यागी ने ‘नहीं बिताना व्यर्थ समय को, समय बहुत उपयोगी है’ के साथ समय के महत्व को रेखांकित किया। इसके अलावा डा. राजेंद्र गौनियाल, डा. अतुल चमोला, डा. ललिता चौहान, डा. नवीन पंत, डा. महेश बहुगुणा, डा. प्रकाश चंद जोशी, डा. श्याम बिहारी, श्रीमती कविता, विद्यासागर, विकास, सभ्यता, नचिकेता ने भी काव्य पाठ किया।

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