आज तेरे दर पे हम भी,मुस्कुराने आ गये।
खुश होने के अब तो,सारे बहाने आ गये।
यूँ पड़ी थी जिन्दगी, अभी तक मायूस सी।
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हट गई मायूसियाँ, अब मौसम सुहाने आ गये।
डॉ. कल्पना कुशवाहा ‘ सुभाषिनी ‘
