हल्द्वानी
आज है बाबा नीब करौरी जयंती: गृहस्थ संत के जीवन, परिवार और रहस्यों पर विशेष
मार्गशीष शुक्ल अष्टमी को हुआ था गृहस्थ संत बाबा नीब करौरी का जन्म। जानें लक्ष्मी नारायण शर्मा से ‘नीब करौरी बाबा’ बनने तक का उनका सफर, पत्नी रामबेटी का तपस्वी जीवन और उनके भारत स्थित प्रमुख आश्रमों के बारे में।
हल्द्वानी। कम ही लोग जानते हैं कि महान संत बाबा नीब करौरी का जन्म मार्गशीष माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को हुआ था, जो इस वर्ष आज पड़ रही है। उनका जन्म वर्ष 1900 में उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद स्थित अकबरपुर गांव में हुआ था। बाबा नीब करौरी, जिनका वास्तविक नाम लक्ष्मी नारायण शर्मा था, संत होने के साथ-साथ एक आदर्श पति, पिता और पुत्र भी थे। वह मानते थे कि गृहस्थ जीवन ही सबसे बड़ी तपस्या है।
उनकी पुत्री गिरिजा शर्मा से हुई बातचीत के आधार पर, लेखिका डॉ. कुसुम शर्मा ने अपनी पुस्तिका ‘महाप्रभु महाराज जी श्री नीब करौरी बाबा- पावन कथामृत’ में उनके जीवन पर प्रकाश डाला है। बाबा के पिता वेदाचार्य पंडित दुर्गा प्रसाद शर्मा एक धार्मिक और विद्वान व्यक्ति थे, जबकि माता कौशल्या देवी धर्मपरायण महिला थीं। बालक लक्ष्मी नारायण शर्मा बचपन से ही अत्यंत दयालु, जिज्ञासु और आध्यात्मिक प्रवृत्ति के थे। प्रारंभिक शिक्षा के बाद वह बनारस गए, जहां उन्होंने वेद और संस्कृत का गहन ज्ञान प्राप्त किया। माता के स्वर्गवास के बाद उनका जीवन पूरी तरह अध्यात्म की ओर मुड़ गया।
मात्र 11 वर्ष की आयु में उनका विवाह नौ वर्ष की रामबेटी से हुआ। लगभग 12-13 साल की उम्र में वह सत्य और अध्यात्म की खोज में घर से निकल गए। उन्होंने कई वर्षों तक घने जंगल, पर्वतों और विभिन्न आश्रमों में साधनारत रहकर जीवन व्यतीत किया। नीब करौरी गांव के भक्तों ने उन्हें पहचान दिलाई और वे नीब करौरी बाबा के नाम से प्रसिद्ध हुए। इस दौरान उनकी पत्नी रामबेटी पति की वापसी की आशा में अपने मायके बादाम बांस चली गईं और एक तपस्विनी जैसा जीवन व्यतीत किया।
कई वर्षों बाद, बाबा के पिता पंडित दुर्गा प्रसाद शर्मा रामबेटी को वापस घर ले आए और यहीं से उनके गृहस्थ जीवन की नई शुरुआत हुई। दस वर्षों बाद बाबा भी अकबरपुर हवेली वापस लौटे। बाबा व रामबेटी की तीन संतानें हुईं: अनेग सिंह शर्मा, धर्मनारायण शर्मा और पुत्री गिरिजा शर्मा। भारत में बाबा नीब करौरी के करोड़ों भक्त हैं और उनके आश्रम आस्था के केंद्र हैं। प्रसिद्ध कैंची धाम, हनुमानगढ़ी (नैनीताल), भूमियाधार, काकड़ीघाट, वृन्दावन, पनकी मंदिर (कानपुर), हनुमानसेतु (लखनऊ), शिमला, दिल्ली, पिथौरागढ़ और ऋषिकेश स्थित आश्रमों में लाखों लोग दर्शन के लिए आते हैं।
