नैनीताल

टमाटर ₹200 किलो और सेब का ₹20 किलो भी नहीं मिल रहा खरीददार

नैनीताल जिले में सेब की बंपर पैदावार, काश्तकारों को मुनाफा तो दूर लागत तक नहीं मिलने से मायूसी

सरकार ने ₹12 घोषित किया समर्थन मूल्य, मंडी पहुंचाने तक 18 से 20 रुपये किलो तक आ रही लागत

घरों में टूटे सेब के लगे हैं ढ़ेर, बाजार में भाव न मिलने से 70 फीसदी सेब पेड़ों से नहीं टूटा

नैनीताल। सरकार ने सेब का न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित कर दिया है। मूल्य पिछले साल की तुलना एक रुपये बढ़ाकर 12 रुपये प्रति किलो कर दिया है। लेकिन बागवानी काश्तकारों का सेब का खरीददार नहीं मिल रहा है।
महंगाई के इस दौर में जहां टमाटर 200 रुपये किलो बिक रहा है वहीं सेब कौड़ियों के भाव 20 रुपये किलो भी नहीं बिकने से काश्तकार मायूस हैं। 20 रुपये में 18 रुपये तक किसान की लागत आ रही है। सरकार की पॉलिसी पर सवाल उठा रहे हैं। किसान अभी तक 70 फीसदी फल नहीं तोड़ पाए। जो सेब टूटा वो किसानों के घरों में ढेर लगे हैं।
जनपद नैनीताल के रामगढ़ एवं धारी ब्लॉक में इस वर्ष सेब  की बंपर पैदावार हुई। बागीचे सेब से लदे हैं। रेट नहीं मिलने से काशकार मायूस हैं। सूपी के जिला पंचायत सदस्य कमलेश सिंह के मुताबिक, काश्तकारों के मुताबिक सेब के एक बॉक्स (8-10 किलो) मंडी में 200 रुपये में खरीददार नहीं मिल रहा है। पेड़ से तोड़ने से लेकर मंडी पहुंचकर बेचने तक एक बॉक्स की लागत ही 150 रुपये आ रही है। मुक्तेश्वर के सेब उत्पादक एवं प्रगतिशील काश्तकार देवेंद्र सिंह बिष्ट बताते हैं, स्थानीय सी ग्रेड के सेब के खरीददार नहीं हैं। रामगढ़ क्षेत्र के सूपी गांव के किसान देवेंद्र सिंह गौड़, बताते हैं उन्होंने जुलाई महीने के आरंभ से लेकर अब तक 1500 पेटी सेब हल्द्वानी मंडी भेजा, जिनका उन्हें 200-500 रुपये प्रति पेटी मिला। लेकिन अब भाव में मंदी आ गई है।
सत्बुन्गा के मोहन सिंह गौड़ और पूरन सिंह नयाल बताते हैं, हल्द्वानी मंडी में आढ़तियों ने सेब भेजने के लिए मना कर दिया है। उनकी तरह क्षेत्र के बहुत काश्तकारों ने अब सेब पेड़ से तोड़ने बंद कर दिए हैं। मंडी में मांग ना होने से किसानों के पास सेब के ढेर लगे हैं।

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इतने गांवों के काश्तकार प्रभावित
सत्बुन्गा प्रधान जीवन गौड़ बताते हैं रामगढ़ क्षेत्र में लगभग 40-50 गांव के काश्तकार सेब के दाम और मांग की समस्या से जूझ रहे हैं। साथ में बंदर और चिड़ियों द्वारा क्षति भी उनकी चिंता बढ़ा रही है। इसी तरह धारी में 50-60 गांव के काश्तकार प्रभावित हुए हैं। इनमें लगभग 70 प्रतिशत बागों में काश्तकारों ने स्थानीय प्रजाति के सेब उगाए हैं। 

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पेड़ से फल तोड़ने से लेकर मंडी में बेचने तक की लागत प्रति पेटी
लकड़ी का बॉक्स – 100 रु 
packing            – 20 रु
मंडी जीप भाड़ा     – 13 रु  
बगीचे से रोड भाड़ा – 20 रु
आढ़ती कमीशन (8%) – 20 रु
पल्लेदारी               – 3 रु 
कील पेपर पिरूल    – 5रु  
कुल खर्च प्रति पेटी (161+ कमीशन 20) = रु 180 से 200

सरकार ने इतना सेब खरीद का रखा लक्ष्य
अपर सचिव-कृषि एवं कृषक कल्याण विभाग रणवीर सिंह चौहान ने सोमवार को सेब के समर्थन मूल्य का आदेश जारी किया है। उद्यान विभाग को नई दरों के हिसाब से किसानों से सेब और नाशपाती लेने के आदेश दिए हैं। यदि बाजार में बेहतर मूल्य मिलता है तो किसान खुले बाजार में अपने फलों को बेच सकते हैं। लेकिन, यदि बाजार एमएसपी से कम होता है तो उद्यान विभाग सचल दलों के मार्फत किसानों से सरकारी दरों पर सेब, नाशपाती खरीदेगा। विभाग ने प्राथमिक स्तर पर किसानों से दोनों श्रेणियों में एक हजार मीट्रिक टन फल एमएसपी पर खरीदने का लक्ष्य रखा है।

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