हल्द्वानी: उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में दीपावली की तिथि को लेकर उत्पन्न हुए भ्रम को दूर करने के लिए ज्योतिषाचार्यों ने एकमत से कहा है कि कुमाऊं में दीपावली पर्व एक नवंबर को मनाया जाएगा।
पर्व निर्णय सभा के आयोजित एक विशेष सम्मेलन में ज्योतिषाचार्यों ने इस बात पर मुहर लगाई कि सोशल मीडिया पर दीपावली की तिथि को लेकर जो भ्रम फैलाया जा रहा है, वह निराधार है। सभा के सचिव डॉ. नवीन चंद्र जोशी ने बताया कि उदयापिनि तिथि में ही पर्व और व्रत किए जाते हैं और स्थानीय पंचांगों के अनुसार, एक नवंबर को ही दीपावली पर्व मनाए जाने का निर्णय लिया गया है।
सभा के उपाध्यक्ष पंडित गोपाल दत्त भट्ट ने बताया कि कुछ लोग तांत्रिक पूजा का हवाला देते हुए 31 अक्टूबर को दीपावली मनाने की वकालत कर रहे हैं, लेकिन शास्त्रीय विधि के अनुसार, दीपावली एक नवंबर को ही मनाई जाएगी। संरक्षक डॉ. भुवन चंद्र त्रिपाठी ने बताया कि एक नवंबर को प्रदोष काल है और इसी दिन लक्ष्मी पूजन किया जाएगा।
प्रांतीय उद्योग व्यापार प्रतिनिधि मंडल के प्रदेश अध्यक्ष नवीन वर्मा ने बताया कि दीपावली की तिथि को लेकर व्यापारियों में भी काफी असमंजस की स्थिति थी। इसीलिए संगठन ने ज्योतिषाचार्यों को एक मंच पर आमंत्रित किया ताकि इस मुद्दे पर स्पष्टता आ सके।
तांत्रिक पूजा और शास्त्रीय विधि में अंतर
पर्व निर्णय सभा के अध्यक्ष डॉ. जगदीश चंद्र भट्ट ने बताया कि जो लोग महाकाली का पूजन करते हैं यानी सिंह लग्न में जो तांत्रिक पूजा करते हैं, वे लोग 31 अक्टूबर को दीपावली मना रहे हैं। लेकिन शास्त्रीय विधि और पंचांगों के आधार पर उत्तराखंड में सभी पंचागों में पहले ही स्पष्ट है कि दीपावली एक नवंबर को ही मनाई जाएगी। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में चार पंचाग चलते हैं और सभी में एक नवंबर को दीपावली पर्व है।
एक नवंबर को क्यों मनाई जाएगी दीपावली?
डॉ. भट्ट ने बताया कि उत्तराखंड में एक नवंबर को सूर्यास्त का समय 5.33 मिनट है और 6.17 मिनट तक प्रदोष काल है। इसलिए एक नवंबर को पूरी रात महालक्ष्मी पूजन किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि दो दीपावली का जो विषय चल रहा है, यह पृथ्वी के संक्रमण और परिक्रमा के आधार पर ऐसा हो रहा है। पहले ऐसी परिक्रमा नहीं होती थी इस बार इत्तफाक है।
कुमाऊं में दीपावली की तिथि को लेकर हुआ विवाद, ज्योतिषाचार्यों ने दी स्पष्टता
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