जय राम के दास-
रहो नित पास,
करो दुःख नाश-
हूँ दास तुम्हारा।
जय मारुति नन्दन-
हे प्रिय रघुनन्दन,
करो शत्रु भंजन-
हूँ दास तुम्हारा।
जय विद्या के सागर –
सबहिं विधि आगर,
भरो मेरी गागर-
हूँ दास तुम्हारा।
जय अन्जनी के लाल-
महा विकराल,
कालहु कर काल-
हूँ दास तुम्हारा।
जय बल के धाम-
हैं प्रिय तुम्हें राम,
कर दो जग में नाम-
हूँ दास तुम्हारा।
जय ‘देवेश’ के ईश-
दे दो आशीष,
सुन लो हे कपीश-
हूँ दास तुम्हारा।
जय मारूति नन्दन-
करो दुःख भंजन,
हे दृग के अंजन-
हँ दास तुम्हारा।
देवेश द्विवेदी ‘देवेश’