चैत्र नवरात्र में देवी दर्शन के लिए उमड़ रही भीड़, भक्तों के कष्ट हरती है मां काली
हरिद्वार। हरिद्वार में सिद्धपीठ मां दक्षिण काली मंदिर आदिकाल से है। पीठ की स्थापना विक्रम संवत 351 में हुई। यहां सच्चे मन से मांगी मुराद पूरी होती है। नवरात्रों में यहां पूजा करने का अपना महत्व होता है। खास बात ये है कि सिद्धपीठ मां दक्षिण काली मंदिर में माई का मुख दक्षिण की ओर नहीं बल्कि पूरब की ओर है। लेकिन गंगा यहां दक्षिण की तरफ बहती है। इसलिए इस पीठ को दक्षिण काली पीठ कहा जाता है।
मंदिर में शनिवार को नारियल, गुलाब पुष्प, काला जामुन, मीठा पान चढ़ता है। श्रद्धालुओं की मंदिर में अपार भीड़ रहती है।मान्यता है कि पीठ की स्थापना विक्रम संवत 351 में हुई। यहां सच्चे मन से मांगी मुराद पूरी होती है। नवरात्रों में यहां विशेष पूजा-अर्चना होती है। माई को रात्रि पूजन बहुत पसंद है। शनिवार को माई स्वेच्छा से खिचड़ी खाती हैं।
माना जाता है कि स्वयं काल भैरव इस काली पीठ की रक्षा करते हैं। काली और शिव भक्त गुरु कामराज ने मां की मूर्ति को यहां स्थापित किया था। कहा जाता है कि भारत की रक्षा के लिए 1962 में चीन के सीज फायर को रोकने के लिए एक अनुष्ठान हुआ। तब राष्ट्रीय स्वामी दतिया जी तीन दिन इस पीठ पर रहे। दक्षिण काली पीठाधीश्वर स्वामी कैलाशानंद गिरी बताते हैं, आदि शक्ति की आराधना से सृष्टि को संबल की प्राप्ति होती है। नवरात्रि में शक्ति के सभी नौ स्वरूपों की आराधना व्यक्ति की अंतर्शक्ति को ऊद्गामी बना देती है। सच्चे मन से की गई मां की पूजा-अर्चना से भक्तों की मनोकमना पूरी होती है।