उत्तराखण्ड
उत्तराखंड में सहकारिता चुनाव का रास्ता साफ: 19 और 20 नवंबर को होगा मतदान
उत्तराखंड में लंबे समय से अटके सहकारिता चुनाव की तारीखें घोषित। 19-20 नवंबर को चुने जाएंगे प्राथमिक सहकारी समितियों के सदस्य और पदाधिकारी। जानें चुनाव कार्यक्रम, कोर्ट के फैसले और सियासी घमासान।
देहरादून। उत्तराखंड में लंबे समय से अधर में लटके सहकारिता चुनाव के लिए आखिरकार नई तारीखों का ऐलान हो गया है। उत्तराखंड सहकारी निर्वाचन प्राधिकरण ने शुक्रवार को हुई एक महत्वपूर्ण बैठक में यह फैसला लिया कि सहकारिता चुनाव अब 19 और 20 नवंबर को आयोजित किए जाएंगे। इस फैसले के बाद राज्य के सहकारिता क्षेत्र में सियासी हलचल तेज हो गई है। प्राधिकरण के अध्यक्ष हंसादत्त पांडेय ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के आदेशों का गहन अध्ययन करने के बाद ही चुनाव कराने का निर्णय लिया गया है।
जारी कार्यक्रम के अनुसार, पहले दिन यानी 19 नवंबर को प्राथमिक सहकारी समितियों के सदस्यों का निर्वाचन होगा। इसके ठीक अगले दिन, 20 नवंबर को इन्हीं नवनिर्वाचित सदस्यों में से सभापति और उपसभापति का चुनाव संपन्न कराया जाएगा। साथ ही, इसी दिन शीर्ष सहकारी संस्थाओं के प्रतिनिधियों का भी निर्वाचन किया जाएगा। प्राथमिक स्तर के चुनाव खत्म होने के बाद अगले चरणों में जिला स्तरीय सहकारी संघों, जिला सहकारी बैंकों और अंत में राज्य स्तरीय संघों तथा बैंकों के चुनाव की प्रक्रिया पूरी होगी।
सहकारिता चुनाव को उत्तराखंड की ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ माना जाता है, और इन संस्थाओं पर नियंत्रण रखने के लिए राजनीतिक दलों में हमेशा होड़ रहती है। नियम स्पष्ट है: बड़े संघों और बैंकों में निदेशक या अध्यक्ष वही बन पाएगा, जिसकी प्राथमिक समितियों में मजबूत पकड़ होगी। जिस गुट के पास समितियों में जितने अधिक ‘डेलीगेट’ होंगे, उसी का बड़े वित्तीय संस्थानों पर दबदबा रहेगा। इसी वजह से सहकारिता से जुड़े सभी दिग्गज अब निचले स्तर की समितियों पर अपना कब्ज़ा जमाने के लिए पूरी ताकत झोंक रहे हैं।
इस बार सहकारिता चुनाव में सत्तारूढ़ भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा और कड़ा मुकाबला देखने को मिल रहा है। हालांकि, सबसे बड़ा घमासान भाजपा के अपने ही खेमे में है। सूत्रों के मुताबिक, चुनाव को कानूनी रूप से उलझाने वालों में सबसे अधिक लोग भाजपा से ही संबंधित रहे हैं, जो पार्टी के भीतर की गुटबाजी को दर्शाता है। कोर्ट से हरी झंडी मिलने के बाद अब दोनों ही दल इन महत्वपूर्ण चुनावों में जीत सुनिश्चित करने के लिए कमर कस चुके हैं।
