बूढ़े बरगद की छाया
दिल में सूनापन रहता है
तन खण्डहर सा लगता है,
देख के सन्नाटा जीवन का
अक्सर डर सा लगता है,
भले बना लो कोठी-बंगले
लेकिन ये सच्चाई है,
बूढ़े बरगद की छाया हो
तो घर,घर सा लगता है।
देवेश द्विवेदी ‘देवेश’
बूढ़े बरगद की छाया
दिल में सूनापन रहता है
तन खण्डहर सा लगता है,
देख के सन्नाटा जीवन का
अक्सर डर सा लगता है,
भले बना लो कोठी-बंगले
लेकिन ये सच्चाई है,
बूढ़े बरगद की छाया हो
तो घर,घर सा लगता है।
देवेश द्विवेदी ‘देवेश’