हरिद्वार

यूरोप से भारतीय उपमहाद्वीप की ओर वन्य पक्षियों का प्रस्थान

प्रोफेसर भट्ट यूरोप व कनाडा की यात्रा पर मास्को स्टेट यूनिवर्सिटी की प्रोफेसरों के साथ जुटा रहे पक्षियों की जानकारी

हरिद्वार। अंतर्राष्ट्रीय पक्षी वैज्ञानिक व गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय हरिद्वार के पूर्व कुलसचिव व प्रोफेसर एमेरिटस डॉ दिनेश भट्ट ने बताया की न केवल हजारों जलीय पक्षी अपितु गोरिया के साइज से भी छोटे पक्षी विदेश से भारत की ओर शीतकाल प्रवास हेतु  प्रतिवर्ष आती है।
प्रोफेसर भट्ट इन दोनों यूरोप व कनाडा की यात्रा पर है जहां वह अपने सहयोगी मास्को स्टेट यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर एरीना व अन्य वैज्ञानिकों के संपर्क में रहकर यूरोप से भारतीय उपमहाद्वीप में आने वाली छोटी व वन्य  पक्षी प्रजातियों के बारे में डाटा एकत्रित कर रहे हैंl प्रोफेसर भट्ट द्वारा दी गई जानकारियां बड़ी रुचिकर है l उनके अनुसार यूरोप के सदूर पश्चिम क्षेत्र जैसे फिनलैंड, नॉर्वे , स्वीडन, पोलैंड, बुल्गारिया, यूक्रेन और रूस से छोटे वन्य पक्षीयो   की कई प्रजातियां जैसे रीड वॉरवलर, रोज फिंच, रेड स्पॉटेड ब्लू थ्रोट, चीफ चैफ, पेडी फील्ड वारवलर, सिट्रिन वेगटेल, ब्लू रॉक थरस, इत्यादि l  साइबेरिया से आने वाले छोटे पक्षियों में साइबेरियन ब्लू रोबिन, साइबेरियन रूबी थ्रोट, पलाश लीफ  वारवलर, डसकी वारवलर, बुटेट वारब्लर इत्यादि हैl
स्विस पक्षी विज्ञान इंस्टिट्यूट स्विट्जरलैंड के वैज्ञानिक साइमन के नेतृत्व में स्वीडन , बुल्गारिया, हेलसिंकी के वैज्ञानिकों ने यूरोप से भारतीय उपमहाद्वीप में पक्षियों के आने वाले मार्ग यानी फ्लाईवे का  निर्धारण किया l उन्होंने  रोजफिंच नमक पक्षी पर जिओ लोकेटर ट्रांसमीटर के  माध्यम से इस महत्वपूर्ण   फ्लाईवे का पता लगायाl  प्रोफेसर दिनेश भट्ट ने बताया कि सबसे आश्चर्यजनक और रुचि
कर बात यह है कि यह छोटे छोटे पक्षी काला सागर (जो यूक्रेन के ठीक नीचे होने से आजकल युद्ध क्षेत्र भी है), उसके बाद कोकासस पर्वत माला, तत्पश्चात कैस्पियन सागर और अल-ब्रज पर्वतमाला, हिंदू कुश पर्वत  या थार के रेगिस्तान को  पार कर हिंदुस्तान में पहुंचते हैंl  यह यात्रा लगभग 8000 किलोमीटर की होती हैl भारत में बसंत ऋतु आने के बाद ग्रीष्म ऋतु की शुरुआत में यह पक्षी पुनः  इसी मार्ग से यूरोपीय देशों में अपने-अपने जंगलों  में प्रजनन हेतु पहुंच जाते हैं क्योंकि तब तक वहां बर्फ पिघल चुकी होती है और  पक्षियों को घोसला बनाने हेतु अनुकूल माहौल मिल जाता हैl
प्रोफेसर दिनेश भट्ट ने एक रुचिकर जानकारी साझा की  कि प्रवासी पक्षी प्रवास गमन से पूर्व कुछ हफ्ते तक ज्यादा मात्रा में भोजन करते हैं और अपना वजन दुगना कर देते हैं l प्रवासी पक्षियों के लिए यह प्रकृति का वरदान हैl  पक्षियों के शरीर में चर्बी के रूप में जमा हुआ यही भोजन माइग्रेशन के समय शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है और इतनी ऊर्जा प्रदान करता है की एक छोटा पक्षी लगभग 400 किलोमीटर की यात्रा एक दिन में कर लेता है और कई दिन तक बिना खाए पिए चल सकता है l यानी रात के समय भी यह छोटा पक्षी यात्रा करते हैं और प्राय रात में ही यात्रा प्रारंभ भी करते हैंl  प्रोफेसर भट्ट ने बताया की कनाडा के क्यूबिक शहर के आसपास के जंगलों में भ्रमण के दौरान उन्हें छोटे प्रवासी पक्षियों के झुंड दिखाई दिए जो कई दिशाओं से आकर के वृक्षों के आसपास रात उड़ान के लिए इकट्ठा हो रहे थे l  उन्होंने बताया कि कनाडा के अधिकांश पक्षी शीतकाल में दक्षिणी अमेरिका, मेक्सिको और ब्राजील की यात्रा करते हैंl  रात्रि काल में दिशा ज्ञान हेतु इनकी चौच  पर संभवत  जिओ मैग्नेटिक सेंसर होते हैं व्हाइट क्राउंड स्पैरो पर हुए शोध कार्य से यह ज्ञात हुआ है की यह पक्षी माइग्रेटरी रूट पर लगभग 60% कम सोया था और यह भी अनुमान लगाया जाता है कि इनका आधा दिमाग ही सोता  है और आधा दिमाग जागृत रहता है l यह भी प्रकृति की एक अनमोल देन इन पक्षियों को हैl  दूसरे शब्दों में कहें तो शीतकाल में यूरोप में बर्फबारी के कारण प्रतिकूल परिस्थितियों होने पर प्रकृति ने इनके शरीर में विशेष प्रकार की शारीरिक व मानसिक व्यवस्था की है ताकि यह छोटे से छोटा पक्षी भी भारतीय उपमहाद्वीप सहित दक्षिणी एशिया  मैं धूप का आनंद ले सकेंl  प्रोफेसर भट्ट ने अपने सर्वे में पाया  कि यूरोप और कनाडा के शहरों में कांच की बहू मंजली इमारतें माइग्रेशन के समय इन छोटे पक्षियों को रात्रिमें अत्यधिक नुकसान पहुंचाते हैंl और इन बिल्डिंगों से टकराकर  इनके झुंड की मृत्यु हो जाती हैl  यह भी पाया गया है कि शहरों की लाइट भी इन्हें भ्रमित करती है l अवगत हो की अन्य पॉल्यूशन की तरह लाइट को भी पॉल्यूशन माना गया है जो न केवल वन्यजीवों अपितु मानव को भी नुकसान पहुंचा रहा हैl
प्राय: सितंबर माह में यूरोप और केंद्रीय एवं उत्तरी एशिया के क्षेत्र से 60 से 70% पक्षी बर्फ गिरने से पूर्व ही अफ्रीका व दक्षिण – पूर्वी एशियाई देशों में शरद ऋतु बिताने पलायन कर जाते हैंl  इस सितंबर में मास्को वह कनाडा के अनेक शहरों जैसे  ओटावा, किंग्सटन ,टोरंटो ,  क्यूयूबैक  मेसीसोगा व ग्रामीण क्षेत्रों में  और यहां तक की  सिटीज के बगीचों में भी नाम मात्र के ही पक्षी दर्शन होते हैं यदा कदा  गोरिया , डब , पिजन के दो चार छोटे छोटे झुंड देखने को मिलते हैंl  यहां ठंड पड़ने से पतझड़ शुरू हो गया हैl अभी हाल ही में  शोध छात्र इकबाल अली खान ने पूर्वी लद्दाख में बूटेड बारबलर  की साइटिंग की है और जैसा कि बताया गया है यह प्रवासी पक्षी सेंट्रल रूस व चीन में प्रजनन करता है।

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