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नई दिल्ली

आसमाँ के फरिश्ते

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आज तेरे दर पे हम यारा ,यूँ मुस्कुराने आ गए।
छोड़ के पीछे गम के,अब सारे बहाने आ गए।
हिम्मतों की डोर को,तुमको भी है थामे रहना।
अब नहीं हमको पड़ेगा,दुश्मनों के जुल्म सहना।

कौन कहता है यहाँ की , तू अब मेरे साथ नहीं।
बरस रही जो आंखों से,वो प्यार की बरसात नहीं।
आज भी उन ख्वाइशों के,पंख हैं मचल रहे।
पत्थरो के पास भी है, मोम कुछ पिघल रहे।

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आयेगा ना और तूफां, ना होगी प्यार की हार कभी।
कोई भी छीन ना पायेगा,उड़ने की अब रफ्तार कभी।
छोड आसमाँ को जमीं पर,फरिश्ते जहाँ में आ गये।
जीत का बिगुल बजा,दुश्मन से टकराने आ गये।

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डॉ. कल्पना कुशवाहा ‘ सुभाषिनी ‘

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संपादक: गुलाब सिंह
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