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उत्तराखण्ड

उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता की आवश्यकता क्यों पड़ी और किन पर होगी लागू, एक नजर में समझें

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देहरादून। उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता लागू करने की दिशा में प्रदेश सरकार ने महत्वपूर्ण पहल की है। विधानसभा के विस्तारित सत्र में मंगलवार को इससे संबंधित विधेयक प्रस्तुत होने के बाद इसे लेकर तमाम जिज्ञासाएं भी आमजन के मन में हैं। समान नागरिक संहिता को लेकर कुछ ज्वलंत प्रश्नों के उत्तर तलाशने की कोशिश की गई।
– समान नागरिक संहिता की आवश्यकता क्यों है?
भारत के संविधान को बनाते समय संविधान सभा में व्यापक बहस के बाद इस बात पर जोर दिया गया था कि राष्ट्रहित में देश में समान नागरिक संहिता उपयुक्त समय पर बनाई जानी चाहिए। बाबा साहब डा भीमराव आंबेडकर भी समान नागरिक संहिता के प्रबल पक्षधर थे।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा भी विभिन्न मामलों में दिए गए अपने निर्णयों में इस संहिता के पक्ष में उचित टिप्पणियां की गईं। वैसे भी देश में आपराधिक व दीवानी मामलों के लिए एक समान कानून लागू हैं। ऐसे में सिविल कानून भी सबके लिए समान रूप से लागू होने पर यह देश की मूल भावना अनेकता में एकता के लिए महत्वपूर्ण कदम होगा।
– जनजातियों को संहिता के दायरे से क्यों बाहर रखा गया?
संविधान के अनुच्छेद 366 व 342 में अनुसूचित जनजातियों को विशेष संरक्षण प्रदान किया गया है। समान नागरिक संहिता का ड्राफ्ट तैयार करने वाली विशेषज्ञ समिति ने जब राज्य के जनजातीय समूहों से संवाद किया तो जनजातीय समाज की ओर से विभिन्न वर्गों में आपसी विमर्श व सहमति बनाने के लिए कुछ समय देने का आग्रह किया गया। वैसे भी अन्य वर्गों की तुलना में जनजातीय समुदाय में महिलाओं की स्थिति बेहतर है।
– संहिता में आनंद मैरिज एक्ट के लिए क्या प्रविधान है?
विधेयक में सभी धर्म व वर्ग में विवाह अनुष्ठानों पर किसी तरह का कोई प्रतिबंध नहीं लगाया है। सप्तपदि, आशीर्वाद, निकाह, पवित्र बंधन, आनंद कारज, आर्य समाजी विवाह, विशेष विवाह अधिनियम के अंतर्गत पंजीकृत विवाह आदि अनुष्ठानों को संरक्षित रखा गया है।
– विवाह पंजीकरण अधिनियम का क्या होगा?
समान नागरिक संहिता लागू होने के बाद राज्य में वर्ष 2010 से लागू अनिवार्य विवाह पंजीकरण अधिनियम समाप्त हो जाएगा।
– मृत व्यक्ति की संपत्ति का विभाजन किस प्रकार होगा?

संहिता में संपत्ति शब्द को हटाकर संपदा का प्रयोग किया गया है। मृतक की सभी प्रकार की चल-अचल, पैतृक, संयुक्त, मूर्त-अमूर्त किसी भी संपत्ति में हिस्सा, हित या अधिकारी को सम्मिलित किया गया है। संहिता लागू होने के बाद पैतृक संपत्ति व्यक्ति की स्वयं अर्जित संपत्ति मानी जाएगी। इसका विभाजन उसके उत्तराधिकारियों के मध्य तय नियमानुसार होगा
– कोई अपनी संपदा की कितनी वसीयत कर सकता है?
कोई भी व्यक्ति अपनी संपूर्ण संपदा की वसीयत कर सकता है। अभी तक मुस्लिम, ईसाई व पारसी समुदायों के लिए वसीयत के अलग-अलग नियम थे। संहिता लागू होने के बाद सभी धर्मों, वर्गों के लिए वसीयत का अधिकार समान होगा।
– गोद लेने का प्रविधान क्यों नहीं है?
जस्टिस जुविनाइल एक्ट में सभी वर्गों के लिए अनाथालयों व बालगृहों के अलावा अपने रिश्तेदारों से गोद लेने का प्रविधान पहले से ही है। इससे संबंधित संस्थाएं व प्रक्रिया पहले से निर्धारित है। संभवतया, इसलिए इस विषय को संहिता के दायरे में नहीं लिया गया।
– गार्जियनशिप से संबंधित प्रविधान संहिता में क्यों नहीं हैं?
गार्जियन एंड वार्ड्स एक्ट एक केंद्रीय कानून है, जो सभी पर समान रूप से लागू होता है।
– समान नागरिक संहिता किन पर होगी लागू?
राज्य के सभी निवासियों के साथ ही राज्य सरकार के सभी कार्मिकों, राज्य में कार्यरत केंद्र सरकार या उसके उपक्रम में कार्मिकों, राज्य में एक साल से निवासरत व्यक्तियों, केंद्र व राज्य की योजनाओं के लाभार्थियों पर यह लागू होगी। कहने का आशय यह कि राज्य में रह रहे सभी व्यक्तियों पर सिविल कानून समान रूप से लागू होंगे।

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संपादक: गुलाब सिंह
पता: हल्द्वानी, उत्तराखण्ड
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